शनिवार, 24 दिसंबर 2011

वक्त की मार

समस्त जीवन का प्यार
मधुरता-अवलम्ब-जीवनाधार
हंसते-बतियाते-रूठते-मनाते
लम्बे सफ़र पर
बहुत-बहुत दिनो तक
अनन्त तक,
साथ चलने का आग्रह
वादा-संकल्प-विचार,
आजमाते, थहियाते एक दूजे को
कभी जीत, कभी हार।
बाहों में थाम लेने को जब सामने,
पड़ा हो सारा आकाश-सारा संसार
कभी देखा है?
उल्लास-उमंगों की ऊँची तरंगों को,
सहसा सन्नाटा साधते?
जैसे उफनते दूध पर पड़ गयी हो
शीतल जलधार!
जिन तरंगों में साहस-दमखम-उन्माद था
तूफ़ान से भिड़ने-खेलने का
एक हल्के हवा के झोंके से
सहमते-सिमटते देखकर
एहसास होता है कि
कितना कठिन-दुस्सह है
वक्त की मार।।
                                                    -विजय 

6 टिप्‍पणियां:

  1. vaqt ki maar vaastav me sahna kathi hai jo us vaqt usko jhel le aur sambhal jaaye vahi jinagi hai.
    bahut achche bhaav hain behtreen prastuti.

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  2. परिस्थियों के अनुरूप सामंजस्य बिठाना आज युग में एक कठिन चुनौती है ... आपकी रचना निश्चय ही एक सार्थक अभिव्यक्ति है | आभार शुक्ल जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. जिन तरंगों में साहस-दमखम-उन्माद था
    तूफ़ान से भिड़ने-खेलने का
    एक हल्के हवा के झोंके से
    सहमते-सिमटते देखकर
    एहसास होता है कि
    कितना कठिन-दुस्सह है
    वक्त की मार।।
    परिस्थियों के अनुरूप सामंजस्य बिठाना आज युग में एक कठिन चुनौती है ... आपकी रचना निश्चय ही एक सार्थक अभिव्यक्ति है | आभार शुक्ल जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन ज्वार-भाटा है,उन पर तैरती,जीवन-आशा है.सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर सार्थक रचना,...अच्छी प्रस्तुती,
    क्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....

    मेरे पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--बेटी और पेड़-- मे click करे

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