शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

उठो जागो नौजवानों!

उठो जागो नौजवानों!
बदल दो इस व्यवस्था को,
क्या तुम्हारा खून ठंढा हो गया है?
या तुम्हारे रीढ़ की हड्डी नहीं है?

है भयावह दुर्दशा और दुर्व्यवस्था,
हर तरफ़ अन्याय की संगत अवस्था,
हर काम का है एक फंडा घूस,
ले रहे हैं देश को सब चूस,
हर सुरक्षा में बड़ा सा छेद,
दे रहे हैं दुश्मनों को भेद,
ध्वस्त है कैसा समूचा तन्त्र,
अब सुधरने का न कोई मन्त्र।

और तुम हो मस्त
गुटके में, धुंआ में!
बन्द कानों में महज़ संगीत लहरी!
विश्व का क्रन्दन सुनेगा कौन?
क्या बनेगे वृद्ध अब इस देश के प्रहरी?
तुम रात भर रंगरेलियों में मस्त!
दिन को दस बजे सोकर उठोगे पस्त!

उठो! जागो! देश के तुम लाल!
जहां देखो बेईमानी, घूसखोरी,
अनाचार, कदाचार
गर्जना करके बनो तुम काल!
                                                         -विजय

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, अच्छी रचना के लिए बधाई,विजय जी ....

    RESENT POST काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  2. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  3. गर्जना करके बनो तुम काल!
    बनना ही होगा ..
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. naujawano ka ahwan karti ek shaskt rachna..sadar pranam ke sath ..meri khwish hai kee aap bhee mere blog se judei aaur kabhi samay nikal kar margdarshan jarur karein

    जवाब देंहटाएं
  5. .


    सुंदर शब्द !
    प्रेरक भाव !
    आवश्यक आह्वान !

    यही तो है सार्थक सृजन !

    आभार !
    साधुवाद !

    जवाब देंहटाएं
  6. आपके पसंदीदा ब्लॉग की सूची में
    शस्वरं
    को स्थान देने के लिए आभारी हूं
    हां, ताज़ा पोस्ट अपडेट के लिए मेरे ब्लॉग का लिंक सही करलें , कृपया


    शस्वरं
    shabdswarrang.blogspot.com


    …और ब्लॉग पर आशीर्वाद देने के लिए आया कीजिए न …
    प्रतीक्षा रहेगी …

    जवाब देंहटाएं
  7. ओज और नाद से परिपूर्ण रचना जो हमें पुनर्निमाण के लिये प्रेरित करती है
    शायद हमारी सुन्न पड़ चुकी शिराओं में कुछ गति आ सके इसको पढ़कर

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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